Jeeavan Sandhya
by Alexaner Esaoulov translated into by Promila
लेखक अलिक्सांद्र इसाउलोव के माता-पिता रूस के अभिजात शासक वर्ग का अभिन्न हिस्सा होने के कारण 1917 की अक्तूबर समाजवादी क्रांति को स्वीकार न कर पाए और वे देश छोड़कर फ्रांस में जा बसे। लेखक अपने जीवन के ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चलते हुए किसी प्रकार आस्ट्रेलिया पहुंच गए और वहां पर एक पिग-फार्मर (सूअर पालक) की बेटी से शादी कर सुखमय जीवन बिताने लगे। पर दुर्भाग्यवश एक कार दुर्घटना में उनकी पत्नी ओल्गा और नन्ही बेटी की उन्हीं की आंखों के सामने मृत्यु हो गई। जिंदगी से निराश होकर लेखक आस्ट्रेलिया छोड़कर भारत आ पहुंचे और विश्वविद्यालय में रूसी भाषा के प्राध्यापक बनकर भारत में ही बस गए। जीवन की संध्या-बेला में उनकी भारतीय पत्नी, जिनसे लेखक का एक बेटा भी हुआ था, ने उन्हें छोड़कर दूसरी शादी रचा ली। बेटा पढ़ने के लिए रूस चला गया।
अब बेचारा लेखक जीवन के अंतिम दौर में बिल्कुल अकेला पड़ गया। न कुछ विशेष करने को बचा था, न कोई साथी, न कोई सहारा। समय काटना मुश्किल हो गया, ऊपर से बुढ़ापे की बीमारियों की जकड़। न रात में नींद, न दिन में चैन। लंबी दोपहरें काट खाने को आने लगीं, खालीपन खोखलेपन में परिवर्तित होने लगा। अब इसाउलोव करें, तो क्या करें?
इसी समय इसाउलोव की नजर बी.डी. यानी उनके यहां काम करने वाली भंगिन पर पड़ी: “उसके हाथ बड़े-बड़े, मजबूत, भारी और खुरदरे लगते थे। वह स्वयं भी ऐसी ही लगती थी; बाहर से वह चुस्त-दुरुस्त, मजबूत और थोड़ी खुरदरी-सी, यहां तक कि थोड़ी अप्रिय-सी … पर उसे थोड़ा बेहतर जानने-पहचानने पर पता चला कि वह बिल्कुल भिन्न थी – विवश, असहाय, भीरु, संतप्त, मानवीय संवेदनशीलता से भरपूर, सुप्रिय और दयालु … परंतु उसके व्यक्तित्व में मुख्य बात उसका रूप या सुंदरता न थी …, बल्कि वह थी उसकी बड़ी-बड़ी गहरी और काली आंखों में एक
विषादग्रस्त अभिव्यंजना …”
Title | Jeevan Sandhya |
Author | Alexaner Esaoulov |
Language | Hindi |
Year | 2020 |
Binding | |
Pages | 400 |
ISBN | 978-81-924967-8-8 |
Subject(s) | Novel |
List Price |
Soft-Back Price: |
Direct purchase from the publisher |
Soft-Back Price: |

Regular Price: Rs. 350/-
Sale Price (directly from publisher): Rs. 200/- + postage (paperback)
ISBN: 978-81-924967-8-8